*💥🌹आजचा दिनविशेष🌹💥*
*पद्मनाभन कृष्णगोपाल अयंगार*
*भारत के गणमान्य परमाणु वैज्ञानिक*
*जन्मदिन - २९ जुन १९३१*
पद्मनाभन कृष्णगोपाल अयंगार (29 जून 1931 – 21 दिसम्बर 2011) भारत के गणमान्य परमाणु वैज्ञानिक थे। वे भारत के प्रथम परमाणु बम परीक्षण के सूत्रधार थे। वे भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (BARC) के निदेशक और उसके बाद परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष रहे। वे भारत-अमेरिका असैनिक नाभिकीय सहयोग के विरुद्ध बोलने वालों में अग्रणी थे। उनका मत था कि यह समझौता अमेरिका का अधिक हित साधता है।
देश के संपूर्ण विकास का विचार मन में रखकर कार्य करनेवाले वैज्ञानिकों (संशोधकों) में से एक सम्माननीय वैज्ञानिक हैं, डॉ. पी. के. अय्यंगार। देश के विभिन्न विभागों से आये हुए इन वैज्ञानिकों के कार्यक्षेत्र भी वैविध्यपूर्ण होते हैं। कुछ संशोधक अपने चुने गए विषयों के मूलभूत संशोधन में डूब चुके होते हैं। जनसामान्य को ऐसे संशोधन कार्यों की जानकारी होती ही है, ऐसा नहीं है। दैनंदिन जीवन में कभी-कभी इस कार्य का उपयोग दैनिक व्यवहार में होता ही है, ऐसा भी नहीं है। फिर भी कालांतर में इसी संशोधन के कारण सामान्य मनुष्य का दैनंदिन जीवन भी अप्रत्यक्ष रूप में सुलभ होता रहता है।
पद्मनाभ कृष्ण गोपाल अय्यंगार ने १९६३ में मुंबई महाविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। मुंबई के भाभा अणु संशोधन केन्द्र में पदार्थ विज्ञान अध्ययन विभाग के संचालक के रूप में उन्होंने अपने कार्य का आरंभ किया।
वैज्ञानिक क्षेत्र में विशेष तौर पर अणु ऊर्जा संबंधित क्षेत्र में डॉ.अय्यंगार ने यश प्राप्त किया। ‘सॉलिड स्टेट फिजिक्स’ यह उनके अध्ययन क्षेत्र का विशेष पसंदीदा विषय है। न्यूट्रॉन स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग इस विषय में भी उन्होंने बहुमूल्य संशोधन किए हैं। अॅटॉमिक फोर्सेस का संबंध एवं उसे ढूढ़ँने के लिए न्यूट्रॉन तकनीकी ज्ञान का उपयोग करने से संबंधित तकनीकी ज्ञान विकसित करना, इसी क्षेत्र को चुनकर डॉ. अय्यंगार ने उसमें महत्त्वपूर्ण संशोधन कर दिखलाया। इसी तकनीक की सहायता से डॉ. अय्यंगार ने अनेक प्रकार के धातुकण एवं विविध प्रकार के क्रिस्टल आदि का अध्ययन किया। साथ ही इसके लिए कुछ विशेष प्रकार की उपकरण व्यवस्था भी विकसित की।
‘पूर्णिमा’ परमाणु केन्द्रों की एक श्रृंखला निर्माण करने में भाभा अणु संशोधन केन्द्र को यश प्राप्ति हुई (१९७२)। अणुशक्ति का उपयोग करके सब्जी, फल, कृषि उत्पादन की क्षमता कैसे बढ़ाई जा सकती है, साथ ही इसका दर्जा कैसे बढ़ेगा, इसके साथ ही अणु शक्ति का उपयोग करके विद्युत निर्मिति को कैसे बढ़ाया जा सकता है, इन सभी क्षेत्रों में संशोधन कार्य करने में डॉ. अय्यंगार का अहम योगदान था।
‘इंडियन अॅकॅडमी फॉर सायलेन्स’ इस संस्था के वे सदस्य बन गए और वहाँ की फेलोशिप भी उन्हें प्राप्त हुई। ‘इंडियन फिजिक्स अॅकॅडमी’ साथ ही इंडियन सायन्स काँग्रेस असोसिएशन नाम की संस्था के वे सदस्य बन गए। हंगेरी के ‘रोलँड इव्होट्व्होस अॅकॅडमी ऑफ सायन्स’ के वे सदस्य बन गए। डॉ. शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार से उन्हें १९७१ में सम्मानित किया गया। केन्द्रीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक संशोधन संस्था के पुरस्कार से उन्हें गौरवान्वित किया गया। १९७५ में पद्मभूषण भारत सरकार का यह नागरी पुरस्कार उन्हें दिया गया। केरल के ‘सायन्स एवं टेक्नॉलॉजी’ इस संस्था ने भी उन्हें संशोधन के गौरवार्थ में पुरस्कार प्रदान किया गया। ‘इन्सा कौन्सिल’ इस संस्था ने १९८२ में उन्हें अपनी सदस्यता प्रदान की।
भारत सरकार के अणु ऊर्जा आयोग ने ‘बी.ए.आर.सी. स्टडिज इज कोल्ड फ्युज़न’ नामक पुस्तक प्रसिद्ध की। इस पुस्तक का संपादन डॉ. पी. के. अय्यंगार ने एम. श्रीनिवासन् के सहकार्य से किया था।
भाभा अणुसंशोधन केन्द्र के अनेक विभागों के प्रमुख पद का भार सँभालते हुए डॉ. पी. के. अय्यंगार ने इस केन्द्र के संचालक पद का सूत्र भी पूरी जिम्मेदारी के साथ सँभाला। भाभा अणु संशोधन केन्द्र के संचालक पद से विभूषित होनेवाले ये सारे संशोधक अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर उन विशेष क्षेत्रों के महान संशोधक के रुप में जाने-माने जाते हैं। इन वैज्ञानिकों के संशोधनीय नियोजन के कारण इस देश के अणुऊर्जा विषयक विकास में गति प्राप्त हुई है, इसमें कोई दोराय नहीं है।

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